हमर छत्तीसगढ़ ला धान के कटोरा कहे जाथे अउ ए कटोरा म सिरिफ धाने भर नई हे, बल्कि एक ले बढ़ के एक साहित्यकार मन घलाव समाए हावय। ए छत्तीसगढ़ के भुइंया म एक ले बढ़ के एक साहित्यकार मन जनम लिहिन अउ साहित्य के सेवा करके ए भुइयां मे नाम कमाइन। हमर छत्तीसगढ़ महतारी के कोरा म स्व. प्यारेलाल गुप्त जी 17 अगस्त सन् 1891 में छत्तीसगढ़ के प्राचीन राजधानी रतनपुर में जनम लिहिन। प्राथमिक शिक्षा ल रतनपुर में ग्रहण करे के बाद आगू के पढ़ाई करे बर बिलासपुर आ गे रहिन हावय।
शिक्षक पिता के आदर्श, सरलता अउ सहजता के संगे-संग उॅखर साहित्य साधना के प्रभाव प्यारे लाल गुप्त में लइकई उमर में ही पर गे रहिस हावय। हालाकि इंखर शिक्षा मेट्रिक तक हो पाय रहिस हावय फेर स्वाध्याय के द्वारा हिन्दी, छत्तीसगढी,़ मराठी अउ अॅग्रेजी चारों भाषा म इंखर अच्छा पकड़ रहिस हावय। इंखर साहित्य साधना अउ स्वाघ्याय के गुन हर सदा बने रहिस। बहुत कम उमर में इंखर रचना कांशी के मासिक पत्र इन्दु में पहली रचना प्रकाशित होइस जउन हर बहुत सराहे गइस अउ फेर इंखर कलम हर गति धर लिहिस।
इंखर बहुत अकन रचना छत्तीसगढी़ अउ हिन्दी भाषा में गद्य अउ पद्य दूनो म पढ़े बर मिलथे। मूल रूप में इंखर छबि गद्य के रचनाकार के रूप में बने रहिस फेर हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी भाषा म बहुत अकन लोकप्रिय गीत के रचना घलाव इंखर पढे़ अउ सुने बर मिलथे। अइसे कोनो विधा नई हे जेमा इमन अपन कलम नई चलाय हे। प्रकृति चित्रण इंखर रचना के विशेषता रहिस हावय। इंखर कविता के कुछ पंक्ति हावय-
चली किसानिन धान लुवाने, सूर्य किरण की छॉव में।
कान में खिनवा, गले में सूता, हरपा पहिने पॉव में।।
एक जघा एमन लिखथें-
स्ूरज दिन में होली, चॉद खेलता रात में।
धरती की होती है होली, चार माह बरसात में।।
ए गीत म कतेेक सुग्घर भाव हर छिपे हावय जउन ला बाबू प्यारे लाल गुप्त हर अपन ग्यान अउ अनुभव ले लिखे हावय। होली म आप लिखे हव-
स्ूारज ने जब रंग बरसाया, किरणों की पिचकारी भर।
जोड़ी-जोड़ी बजे नगाड़े, गॉवों के चौराहों पर।।
गाने लगे फाग, दादरा, झांझ मजीरा के धुन में।
रंग-गुलाल, धूल से धूसर, हुए मस्त सब नारी नर।।
ए सब गीत हर तो एक बानगी भर आय। अइसे कतको रचना अपन कलम ले लिखे रहिन जेमा प्राचीन छत्तीसगढ़ इतिहास ग्रंथ , सुखी कुटुम्ब उपन्यास, लवंग लता उपन्यास, फ्रांस की राज क्रांति का इतिहास, ग्रीस का इतिहास, बिलासपुर वैभव गजेटियर, पुष्पहार कहानी संग्रह, एक दिन नाटक आदि हवय।
बिलासपुर वैभव बाबू प्यारे लाल गुप्त जी के एक अनुपम कृति आय जउन ला मध्य प्रदेश के डिप्टी कमिश्नर राय बहादुर हीरा लाल के कहे म गुप्त जी लिखे रहिन। ए किताब म अविभाजित बिलासपुर जिला के जम्मों जानकारी समाय हावय। फ्रांस की राज क्रांति का इतिहास अउ ग्रीस का इतिहास किताब हर तो अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा संचालित विशारद परीक्षा म पाठ्य पुस्तक के रूप म 20 से 25 बछर तक शामिल रहिस।
संवत् 2000 बछर पूरा होय के उपलक्ष्य म बाबू प्यारे लाल गुप्त जी छत्तीसगढ़ के प्राचीन राजधानी रतनपुर म अड़बड़ जतन करके विष्णु महायज्ञ के भव्य आयोजन करवाईन अउ ओखर सुरता में “श्री विष्णु महायज्ञ स्मारक ग्रंथ“ लिखिन जउन हर कांशी नगरी प्रचारिणी सभा में खूब सराहे गइस।
जब कभू भी छत्तीसगढ़ के इतिहास लिखे के बात होही तब बाबू प्यारे लाल गुप्त के महान कृति प्राचीन छत्तीसगढ़ के उल्लेख जरूर होही। ए किताब हर गुप्त जी के लगातार सात बरस के अथक परिश्रम, यात्रा, संस्मरण अउ अध्ययन करे के बाद लिखे गइस। ए किताब हर तो छत्तीसगढ़ के इतिहास जानने वाला मन बर अनमोल धरोहर हरय।
बाबू प्यारे लाल गुप्त जी अपन किताब में छत्तीसगढ़ के लोकगीत संस्कार, सोहर, बरूआ, ब्याह, सेवागीत, गउरा, भोजली, फाग, सुवा, रउताही, देवार, निरगुन, ददरिया, पंडवानी, आल्हा, बैना आदि ला उदाहरण सहित समझाय हावय। इंखर एक गीत हर तो खूब नाम कमाइस जउन हर आज घलाव सुने बर मिलथे-
हमर कतका सुंदर गांव, जइसे लक्ष्मी जी के पांव।
घर उज्जर लिपे पोते, जेला देख हवेली रोथे।
चरखा रोज चलाथन, गांधी के गुन गाथन।
हम सब लेथन राम के नाव।
हमर कतका सुंदर गांव।।
गांव वाले मन ला सुमति म रहे के संदेस देवत गीत-
भाई गांव म सुमता राखा, झन उर्रू बोली भाखा।
नान-नान बातन के खातिर, होथा गजब लड़ाई। भाई गांव……..
बाबू प्यारे लाल गुप्त जी छत्तीसगढी भाषा अउ कविता के अधिकारिक कवि रहिन। उॅखर जाए ले जउन खालीपन आय हावय वो हर कभू नई भर पावय।
चलौ-चलौ हंसा अमर लोक जइबो, इंहां हमार संगी कोनो नइये।
एक संगी हावय घर के तिरिया, देखे म जियरा जुड़ावय।।
14 मार्च 1976 में छत्तीसगढ़ के महान साहित्यकार दुलरवा बेटा बाबू प्यारे लाल गुप्त जी हमर बीच नई रहिन फेर उॅखर कृति हर आज घलाव हमर अंतस में ज्ञान के उजियारी बगरावत हावय। छत्तीसगढ़ के अइसन दुलरवा बेटा ला कोटि-कोटि नमन।
रामेश्वर गुप्ता, बिलासपुर